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उत्तर प्रदेश News

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इस सीट से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे अखिलेश यादव, 52 साल में केवल दो बार यहां से जीती है BJP

वॉयस ऑफ ए टू जेड न्यूज :-हर किसी की नजर समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव पर टिकी है। देश में सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें यूपी में ही हैं। ऐसे में खासतौर पर अखिलेश यादव की साख यहां दांव पर है। एसपी प्रत्याशियों के नाम पर भी अभी से चर्चा शुरू हो गई है।

अगले साल लोकसभा चुनाव को लेकर सत्ताधारी भाजपा के साथ-साथ विपक्ष ने भी जोरशोर से तैयारियां शुरू कर दी हैं। भाजपा के खिलाफ विपक्षी दल महागठबंधन बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इस गठबंधन में यूपी से समाजवादी पार्टी भी शामिल हो सकती है। ऐसे में हर किसी की नजर समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव पर टिकी है। देश में सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें यूपी में ही हैं। ऐसे में खासतौर पर अखिलेश यादव की साख यहां दांव पर है। एसपी प्रत्याशियों के नाम पर भी अभी से चर्चा शुरू हो गई है।

अखिलेश यादव ने भी कन्नौज से लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला ले लिया है। इसका एलान वह खुद पिछले साल नवंबर में कर चुके हैं। आइए जानते हैं कन्नौज लोकसभा सीट का सियासी समीकरण क्या है? यहां अब तक कौन-कौन चुनाव लड़ चुका है? कितनी बार समाजवादी पार्टी और कितनी बार भाजपा को जीत मिली है? अखिलेश यादव क्यों यहां से चुनाव लड़ना चाहते हैं?

पहले जानिए अखिलेश ने क्या एलान किया है? 

नवंबर 2022 में अखिलेश यादव मीडिया से रूबरू हो रहे थे। उस वक्त मैनपुरी लोकसभा का उपचुनाव था। अखिलेश से पूछा गया था कि कन्नौज से पहले सांसद रहीं डिंपल यादव अब मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव लड़ रहीं हैं। ऐसे में क्या आप (अखिलेश यादव) कन्नौज से चुनाव लड़ेंगे? 

इसका जवाब देते हुए सपा प्रमुख ने कहा, ‘क्यों, क्या करेंगे खाली बैठकर? हमारा तो काम ही है चुनाव लड़ना। जहां हम पहला (कन्नौज) चुनाव लड़े थे, वहां फिर से चुनाव लड़ेंगे।’ उन्होंने यह भी कहा कि कन्नौज उनकी कर्मभूमि है और कन्नौज के लोगों ने उन्हें तीन बार सांसद के रूप में चुना है। अखिलेश ने कहा, ‘यहां की जनता ने मुझे हमेशा स्नेह और प्यार दिया है इसलिए मैं कन्नौज को कभी नहीं छोड़ सकता।’

तो कन्नौज से ही क्यों चुनाव लड़ेंगे अखिलेश यादव? 

इसे समझने के लिए हमने राजनीतिक विश्लेषक संजय मिश्र से बात की। उन्होंने कहा, 'कन्नौज समाजवादी पार्टी और खासतौर पर अखिलेश यादव के परिवार की परंपरागत सीट है। इस सीट से समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया खुद चुनाव लड़ चुके हैं। मुलायम सिंह यादव भी यहां से सांसद रह चुके हैं। अखिलेश यादव ने भी अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत इसी सीट से की थी। साल 2000 में वह यहां से पहली बार सांसद चुने गए थे। इस सीट से अखिलेश की पत्नी भी सांसद रह चुकी हैं। लेकिन 2019 में यहां से भारतीय जनता पार्टी के सुब्रत पाठक चुनाव जीत गए।'

संजय के अनुसार, 'अखिलेश जानते हैं कि अगर कन्नौज का गढ़ बचाना है तो उन्हें खुद इस सीट से चुनाव लड़ना पड़ेगा। अगर इस सीट पर दोबारा उनकी पार्टी चुनाव हारती है तो इसका सियासी खेमे और पब्लिक के बीच गलत संदेश जाएगा। इसका असर अन्य सीटों पर भी पड़ सकता है। ऐसे में अखिलेश हर हालत में ये सीट वापस पाना चाहते हैं। यही कारण है कि इस बार उन्होंने काफी पहले से इसके लिए एलान कर दिया है।'

क्या रहा है इस सीट का इतिहास? 

1967 में पहली बार ये सीट अस्तित्व में आई थी। तब समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया ने खुद यहां से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। लोहिया संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर यहां से चुनाव जीते थे। 1971 में कांग्रेस के सत्य नारायण मिश्र, 1977 में जनता पार्टी के राम प्रकाश त्रिपाठी, 1980 में जनता पार्टी (सेक्युलर) के छोटे सिंह यादव, 1984 में कांग्रेस से शीला दीक्षित, 1989 और 1991 में फिर से छोटे सिंह यादव यहां से सांसद चुने गए थे। 1996 में पहली बार इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार ने जीत हासिल की। भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे चंद्र भूषण सिंह यहां से सांसद चुने गए थे। 1998 में प्रदीप यादव और फिर अगले ही साल यानी 1999 में यहां से मुलायम सिंह यादव सांसद चुने गए। 

साल 2000 में जब मुलायम ने ये सीट छोड़ी तो अखिलेश यादव यहां से चुनाव लड़े। अखिलेश लगातार 2000, 2004 और फिर 2009 में यहां से सांसद चुने गए। 2012 में जब अखिलेश मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने अपनी सीट से पत्नी डिंपल यादव को चुनाव लड़ाया। डिंपल तब यहां से पहली बार सांसद चुनी गईं। 2014 में हुए चुनाव में भी डिंपल ने ही यहां से जीत हासिल की। 2019 में मोदी लहर और भाजपा की तैयारी ने दूसरी बार सपा के गढ़ में सेंध लगाई। भाजपा उम्मीदवार सुब्रत पाठक ने डिंपल यादव को हरा दिया और सांसद चुन लिए गए। 

2014 और फिर 2019 के कैसे रहे नतीजे? 

2014 में समाजवादी पार्टी से डिंपल यादव और भाजपा से सुब्रत पाठक यहां के प्रत्याशी थे। डिंपल को चार लाख 89 हजार वोट मिले थे और दूसरे नंबर पर रहे सुब्रत पाठक को चार लाख 69 हजार वोट मिले। 2012 के मुकाबले सुब्रह के वोटों में 21 फीसदी से ज्यादा का इजाफा हुआ था। 

2019 में इसी के दम पर सुब्रत ने डिंपल यादव को चुनाव में हरा दिया। तब सपा से चुनाव लड़ने वाली डिंपल को पांच लाख 50 हजार वोट मिले और सुब्रत पाठक को पांच लाख 63 हजार मत। 2014 के मुकाबले सुब्रत के वोटों में सात फीसदी का इजाफा हुआ था तो डिंपल को महज 4.40 प्रतिशत वोटों का फायदा मिला था। 

अभी क्या है सीट का समीकरण? 

कन्नौज लोकसभा के अंतर्गत पांच विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें से चार पर अभी भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है, जबकि एक सीट ही समाजवादी पार्टी के खाते में है। छिबरामऊ से भाजपा की अर्चना पांडेय, र्तिवा से कैलाश सिंह राजपूत, कन्नौज से असिम अरूण, रसूलाबाद से पूनम शंखवार विधायक हैं। बिधुना सीट से समाजवादी पार्टी की रेखा वर्मा विधायक चुनी गईं थीं।